50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण संभव नहीं: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

देश में आरक्षण नीति लंबे समय से एक संवेदनशील और चर्चा का विषय रही है। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक अहम निर्णय सुनाते हुए साफ किया कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। कोर्ट ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के कुछ मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण सीमा पार होने को लेकर की गई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की।

कोर्ट का तर्क और पृष्ठभूमि

मामला कानपुर, जालौन और सहारनपुर मेडिकल कॉलेजों से जुड़ा था, जहां आरक्षण की सीमा 79 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। यह स्थिति मेडिकल शिक्षा निदेशक के आदेश के बाद बनी, जिसमें ओबीसी और अन्य वर्गों के लिए अतिरिक्त सीटें आरक्षित की गईं। हाईकोर्ट ने इसे संविधान के विरुद्ध बताया और कहा कि 50 प्रतिशत की तय सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।

दरअसल, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने "इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार" मामले में आरक्षण को अधिकतम 50 प्रतिशत तक सीमित रखने का आदेश दिया था। उसी फैसले के आधार पर हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की कि आरक्षण की सीमा लांघना न्यायसंगत नहीं है।

50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण संभव नहीं: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

सरकार और याचिकाकर्ताओं की दलीलें

राज्य सरकार का तर्क था कि सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों को ज्यादा अवसर मिलना चाहिए। दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह सीमा संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलील को सही मानते हुए सरकार के फैसले पर रोक लगा दी।

नौकरी तलाश रहे कर्मचारियों के लिए महत्वपूर्ण टिप्पणी

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एक और अहम बात कही कि यदि कोई कर्मचारी बेहतर वेतन और अवसर की तलाश में दूसरी नौकरी ढूंढ रहा है, तो उसे बकाया भुगतान रोकना गलत है। यानी, कर्मचारी को उसकी पिछली सेवाओं का पूरा लाभ मिलना चाहिए, चाहे वह नई नौकरी की तलाश में क्यों न हो।

सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की नियुक्ति पर चिंता

इस मामले के साथ ही, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में महिला न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने पर भी जोर दिया गया। बार एसोसिएशन और कई वरिष्ठ वकीलों ने केंद्र सरकार और उच्च न्यायालयों से आग्रह किया कि महिला जजों की नियुक्तियों को प्राथमिकता दी जाए। न्यायपालिका में लैंगिक संतुलन को जरूरी बताते हुए यह भी कहा गया कि महिला जजों की भागीदारी न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता और निष्पक्षता को और मजबूत करेगी।

आम जनता पर असर

यह फैसला छात्रों और अभ्यर्थियों के लिए बेहद अहम है। अब यह साफ हो गया है कि मेडिकल कॉलेजों या किसी भी अन्य सरकारी संस्थान में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। इससे सामान्य वर्ग और अन्य श्रेणियों के अभ्यर्थियों के लिए अवसरों में संतुलन बना रहेगा।

निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल आरक्षण नीति को स्पष्ट करता है बल्कि भविष्य में होने वाले विवादों पर भी रोक लगाने का काम करेगा। आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक न्याय और अवसर की समानता है, लेकिन इसकी सीमा तय रहनी चाहिए ताकि किसी वर्ग के साथ भेदभाव न हो। वहीं, महिला जजों की नियुक्ति को लेकर उठी मांग न्यायपालिका में संतुलन और विश्वास को और मजबूत करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

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